उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण मुक्कं ।
विसहर विस निन्नासं, मंगल कल्लाण आवासं ।।१।।
विसहर फुलिंग मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ ।
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।।२।।
चिट्ठउ दुरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहु फलो होइ ।
नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोगच्चं।।३।।
तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि कप्पपाय वब्भहिए ।
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ।।४।।
तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि कप्पपाय वब्भहिए ।
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ।।४।।
अतिशयपूर्ण प्रभावी मंत्र. :सुज्ञान मोदी.
ReplyDeleteLast stanza is missing. Only 4th stanza repeated.
ReplyDeleteLast stanza is missing. Only 4th stanza repeated.
ReplyDeletePlease correct the las stanza... this is wrong ... very important mantra.... pl. Update....
ReplyDeleteWhere to find two deleted stanzas as originally there were seven. Also the fifth stanza is found every where so why here you repeat fourth in place of the fifth? This kind of editing is diminishing and uncalled for. I find it rediculous some one decided two delete two stanzas as Yakshas were troubled too often by us lowly humans ! That is so shallow ! With all their powers and obligation to do good to man kind, how can that be. I think the esteemed Muni did not want shravakas reach higher level. Sad, very sad !!
ReplyDeletekj20shah@gmail.com
Have u full stanza?? Then plz reply
DeleteNo I am looking for full version with all seven stanzas if some one has it.
DeleteThanks,
Pagal hai tu? Akal hai nai ego hai terme isiliye ye baate nikal rai hai! Jisne aisa stotra banaya tu uspe question kar raha hai? Teri kya aukat hai bhai tu tu banake dikha ek bhi dev ya devi ko saamne lake to dikha fir manta hu ki tu takatwala hai aur unko question kar sakta hai! And for ur kind information bhadrabahu ms was shrut kevali means he was just below the level of tirthankar! Tu shanti rakh akal nai hai tujhme
Deleteश्रीभद्रबाहुप्रसादात् एष योग: पफलतु’
ReplyDeleteउवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघण-मुक्कं
विसहर-विस-णिण्णासं मंगल कल्लाण आवासं ।१।
अर्थ-प्रगाढ़ कर्म-समूह से सर्वथा मुक्त, विषधरो वेफ विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण वेफ आवास तथा उपसर्गों को हरने वाले भगवान् पार्श्वनाथ की मैं वन्दना करता हूँ।
विसहर-फुल्लिंगमंतं कंठे धारेदि जो सया मणुवो
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।२।
अर्थ-विष को हरने वाले इस मंत्रारूपी स्पुफलिंग (ज्योतिपुंज) को जो मनुष्य सदैव अपने वंफठ में धरण करता है, उस व्यक्ति वेफ दुष्ट ग्रह, रोग, बीमारी, दुष्ट शत्रु एवं बुढ़ापे वेफ दु:ख शांत हो जाते हैं।
चिट्ठदु दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होदि
णर तिरियेसु वि जीवा, पावंति ण दुक्ख-दोगच्चं ।३।
अर्थ-हे भगवन्! आपवेफ इस विषहर मंत्रा की बात तो दूर रहे, मात्रा आपको प्रणाम करना भी बहुत पफल देने वाला होता है। उससे मनुष्य और तियर्च गतियों में रहने वाले जीव भी दु:ख और दुर्गति को प्राप्त नहीं करते हैं।
तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणि कप्प-पायव-सरिसे
पावंति अविग्घेणं जीवा अयरामरं ठाणं ।४।
अर्थ वे व्यक्ति आपको भलिभाँति प्राप्त करने पर, मानो चिंतामणि और कल्पवृक्ष को पा लेते हैं, और वे जीव बिना किसी विघ्न वेफ अजर, अमर पद मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
इह संथुदो महायस भत्तिब्भरेण हिदयेण
ता देव! दिज्ज बोहिं, भवे-भवे पास जिणचंदं ।५।
अर्थ-हे महान् यशस्वी ! मैं इस लोक में भक्ति से भरे हुए हृदय से आपकी स्तुति करता हूँ। हे देव! जिनचन्द्र पार्श्वनाथ ! आप मुझे प्रत्येक भव में बोधि (रत्नत्रय) प्रदान करें।
ओं अमरतरु-कामधेणु-चिंतामणि-कामवुंफभमादिया।
ॐ, अमरतरु, कामधेणु, चिंतामणि, कामकुंभमादिया
सिरि पासणाह सेवाग्गहणे सव्वे वि दासत्तं ।६।
अर्थ-श्री पार्श्वनाथ भगवान् की सेवा ग्रहण कर लेने पर ओम्, कल्पवृक्ष, कामधेनु, चिंतामणि रत्न, इच्छापूर्ति करने वाला कलश आदि सभी सुखप्रदाता कारण उस व्यक्ति के दासत्व को प्राप्त हो जाते हैं।
उवसग्गहरं त्थोत्तं कादूणं जेण संघ कल्लाणं
करुणायरेण विहिदं स भद्दबाहु गुरु जयदु ।७।
अर्थ-जिन करुणाकर आचार्य भद्रबाहु वेफ द्वारा संघ के कल्याणकारक यह ‘उपसर्गहर स्तोत्र’ निर्मित किया गया है, वे गुरु भद्रबाहु सदा जयवन्त हों।
From where did you get last 2 stanxas?
DeleteAs per my knowledge it was deleted from everywhere.
http://www.jinvanisangrah.com/category/नैमित्तिक-पूजाएँ-naimittik-poojayen/उपसर्ग-हर-स्तोत्र-upsarg-har-stotra/
Deleteश्रीभद्रबाहुप्रसादात् एष योग: पफलतु’
ReplyDeleteउवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघण-मुक्कं
विसहर-विस-णिण्णासं मंगल कल्लाण आवासं ।१।
अर्थ-प्रगाढ़ कर्म-समूह से सर्वथा मुक्त, विषधरो वेफ विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण वेफ आवास तथा उपसर्गों को हरने वाले भगवान् पार्श्वनाथ की मैं वन्दना करता हूँ।
विसहर-फुल्लिंगमंतं कंठे धारेदि जो सया मणुवो
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।२।
अर्थ-विष को हरने वाले इस मंत्रारूपी स्पुफलिंग (ज्योतिपुंज) को जो मनुष्य सदैव अपने वंफठ में धरण करता है, उस व्यक्ति वेफ दुष्ट ग्रह, रोग, बीमारी, दुष्ट शत्रु एवं बुढ़ापे वेफ दु:ख शांत हो जाते हैं।
चिट्ठदु दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होदि
णर तिरियेसु वि जीवा, पावंति ण दुक्ख-दोगच्चं ।३।
अर्थ-हे भगवन्! आपवेफ इस विषहर मंत्रा की बात तो दूर रहे, मात्रा आपको प्रणाम करना भी बहुत पफल देने वाला होता है। उससे मनुष्य और तियर्च गतियों में रहने वाले जीव भी दु:ख और दुर्गति को प्राप्त नहीं करते हैं।
तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणि कप्प-पायव-सरिसे
पावंति अविग्घेणं जीवा अयरामरं ठाणं ।४।
अर्थ वे व्यक्ति आपको भलिभाँति प्राप्त करने पर, मानो चिंतामणि और कल्पवृक्ष को पा लेते हैं, और वे जीव बिना किसी विघ्न वेफ अजर, अमर पद मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
इह संथुदो महायस भत्तिब्भरेण हिदयेण
ता देव! दिज्ज बोहिं, भवे-भवे पास जिणचंदं ।५।
अर्थ-हे महान् यशस्वी ! मैं इस लोक में भक्ति से भरे हुए हृदय से आपकी स्तुति करता हूँ। हे देव! जिनचन्द्र पार्श्वनाथ ! आप मुझे प्रत्येक भव में बोधि (रत्नत्रय) प्रदान करें।
ओं अमरतरु-कामधेणु-चिंतामणि-कामवुंफभमादिया।
ॐ, अमरतरु, कामधेणु, चिंतामणि, कामकुंभमादिया
सिरि पासणाह सेवाग्गहणे सव्वे वि दासत्तं ।६।
अर्थ-श्री पार्श्वनाथ भगवान् की सेवा ग्रहण कर लेने पर ओम्, कल्पवृक्ष, कामधेनु, चिंतामणि रत्न, इच्छापूर्ति करने वाला कलश आदि सभी सुखप्रदाता कारण उस व्यक्ति के दासत्व को प्राप्त हो जाते हैं।
उवसग्गहरं त्थोत्तं कादूणं जेण संघ कल्लाणं
करुणायरेण विहिदं स भद्दबाहु गुरु जयदु ।७।
अर्थ-जिन करुणाकर आचार्य भद्रबाहु वेफ द्वारा संघ के कल्याणकारक यह ‘उपसर्गहर स्तोत्र’ निर्मित किया गया है, वे गुरु भद्रबाहु सदा जयवन्त हों।
What is the right time to read this?
DeleteUvvasagaram ke pure 27 gathe chaiye..
ReplyDeleteAgar kisi ke paas ho to pls mail me
Jitendragajani@gmail.com
Plz sende 27 gatha to my mail id
Deletecatchabai08@gmail.com
I also want them. If you could email me at kj20shah@gmail.com
ReplyDeleteThe original Uvassagahar stotra had 27 stanzas but when rather than use people were misused that stores so only now 5 and somewhere 7 stanzas are available. Anybody wants all 27 or 7 stanzas please let me know. I will send it with this commitment that it should not be misused.
ReplyDeletePls send it to me vivekshyamsukha@yahoo.com
DeletePls send it to my mail I'd ca.vivekshyamsukha@gmail.com
DeletePls send me at vikas.track07@gmail.com, need help
DeletePls send me at vikas.track07@gmail.com
DeleteI want all 27 stanzas of upsarghara stotra please send me.
DeleteCan you email me also pls.. vijaymehta@live.in
Deletepls share 27 stanzas at fiblindore@gmail.com
DeleteHello I'm sunny jain I required all 27 stanza of uvasaggaharam stotra has I have 7 gaatha. Do mail me at jme2010sunny@gmail.com
DeleteI want 27 gatha full stotra pls send if you have on my id rishijain99@gmail.com
DeleteI want 27 gatha full stotra in english if you have please send me to Rickyshah9216@gmail.com
DeletePlease email me.. Dhaval002@gmail.com
DeleteJai Jinendra. Please send me at annu266@gmail.com and annu_26_6@hotmail.com
DeleteJai jinendra
DeleteEmail me complete 27 gatha at sandeepkhajanchi1991@gmail.com
I would like to have the 27 gathas pl.
DeletePlease mail me on Kiddo_rahul@yahoo.com. Commitment from my side of not misusing it. Thanks in advance
DeleteKindly send me all 27 stanzas of stotra at sanghvi.rachita@gmail.com
DeleteI am Dinesh please send me 27 stanzas of stotra to my mail id.
Deletenakodabheruji786@gmail.com
Kindly email to malini1601@gmail.com
DeleteWill it be possible for you to mail me all the 27 Gathas pls. My I’d,
Deletedivyeshshah56@hotmail.com n gmail.com
Request you to pls send 27 gathas mantra to me, we will not miss use
DeleteMy id is mitalsheth511@gmail.com
Pls.
Hi Please email me @ jagrut1610@hotmail.com
DeleteThank you Jai Jinendra!
Please send me complete 27 stanzas at sidznet@gmail.com, Thanks sidharth jain
DeleteI want full 27 stanza plzz send me at
DeleteBothrasundeep@gmail.com
pls send me at vinitkkhajanchi@gmail.com
DeleteKindly send me full stotra
DeleteAt jain.pwn@gmail.com thanks in advance
Please send me at jainshaifali95@gmail.com
DeleteI want 27 gathas of Uvasaggaharam Stotra. Please send to daksha033@yahoo.com
DeletePlease share all 27 gathas to nehaoswal_7@yahoo.com
DeletePlease do send me full 27 stanzas along with details of restrictions prescribed so I will adhere to the same. I promise not to misuse it and cross the limitations given. Thanks
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletePls send me all 27 stanzas at kushals86@gmail.com. Commitment from my side of not misusing it.
ReplyDeletePls send me at ljain48@gmail.com. thanks in advance.
ReplyDeletePlease send me the original stores with the precautions
ReplyDeletePls send me all 27 stanzas at darshankm8515@gmail.com6.. Commitment from my side of not misusing it.
ReplyDeletePls send me all 27 stanzas at bothrarahul@gmail.com
ReplyDeleteCommitment from my side of not misusing it.
bothrarahul9@gmail.com
ReplyDeletekindly share all the 27 gatha to shingvi@gmail.com
ReplyDeleteplease email all 27 gathas on zankhanab@yahoo.com
ReplyDeleteRequest you to please send me too on priyankjain301@gmail.com
ReplyDeleteNo misuse of such would be made from my side..its my commitment..
Request you to please send 27 Gatha on chintan9@yahoo.in
ReplyDeletePlz send it to me @ alpashah53@gmail.com
ReplyDeleteI want 27 gatha plz send me
ReplyDeleterrupalsshah123@gmail.com
I also want 27 gatha ple send me
ReplyDeleteकृपया उवासग्गहरम की27 गाथा भेजे
ReplyDeleteआत्म उन्नति हेतु
I now see all 27 gatha published in YouTube so one can find it right there. The 27 gathas done 27 times takes over four hours of uninterrupted time. In scheme of divine things, one does not get chance to do it without disturbance unless Divine Blessings are present. I found lot of relief doing this procedure even though I did have some minor disruption. Please do not do this for minor problems, only as a last resort when all other has been of no help.
ReplyDeletecould someones pls help me with the English lyrics
ReplyDeleteI need Uvasagghar stotra with 27 gathas please mail me.
ReplyDeletePl mail me tanishymconsultants@gmail.com .. I assure It will be not be misused
ReplyDeletePlease send 27 on vishrut_shah@yahoo.com and i assure not to misuse.
ReplyDeletePlease send all 27 ghata on doshimegs@gmail.com and i assure not to misuse.
ReplyDeleteI humbly request one to kindly send me 27gathas of the stotra on my mail hppaxalannexe@gmail.com
ReplyDeletePlz i also want that 27gathas of stotra.
ReplyDeletePlz send at jainkalpana160882@gmail.com
I want 27 uvasa
ReplyDeletegram gatha
Pranam please could you send me a copy of the Uvasaggaharam 27 Gatha stotra to hemalacharya@hotmail.com , Thank you so much 🙏🙏
ReplyDeleteKindly send the 27 stotra mantra at this ID., I am a Jain and a mother of one son, Belong to the family of Chandmal Karnawat from Jodhpur/ Udaipur .... akarnaawat@gmail.com
ReplyDeleteThank you
Appreciate your response in advance ����
Hi! Request you to send me all 27 stotra to my email id ashishshahcs@gmail.com.
ReplyDeletePlease send me full 27 stanzas . I promise not to misuse it and cross the limitations.Thanks
ReplyDeleteEmail at - jainamitp.174@gmail.com
Pranam
ReplyDeleteKind request to send 27 gatha Uvasagaharam stotra
amish2001@rediffmail.com
Pranam
ReplyDeleteKind request to send 27 gatha Uvasagaharam stotra
terpanthprofessionaloffice@gmail.com
॥ श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् ॥
Deleteउवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म घण मुक्कं ।
विसहर विस निन्नासं, मंगल कल्लाण आवासं ॥१॥
विसहर फुलिंग मंतं, कंठे धारेई जो सया मणुओ ।
तस्स गह-रोगमारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ॥२॥
चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होई।
नर तिरि एसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख दोगच्चं ॥३॥
ॐ अमर तरु कामधेणु, चिंतामणि-काम- कुंभ माइया ।
सिरि पासनाह सेवा, गहणे सव्वे वि दासत्तं ॥४॥
ॐ श्रीं ऐं तुह दंसणेण सामिय,पणासेइ रोग सोग दुःक्ख दोहग्गं ।
कप्प तरु मिव जायई, ॐ तुह दंसणेण सव्व फल हेऊ स्वाहा ॥५॥
ॐ ह्रीं नमिउण विग्घ नासय, मायाबी एण धरण नागिंदं ।
सिरि कामराज कलियं, पास जिणिंदं नमंसामि ॥६॥
ॐ ह्रीं श्रीं सिरिपास विसहर, विज्जा मंतेण झाणं झाएज्जा ।
धरण-पउमावई देवी, ॐ ह्रीं क्ष्म्ल्व्यूँ स्वाहा ॥७ ॥
ॐ जयउ धरणिंद-पउमावई य नागिणी विज्जा ।
विमलझाण सहिओ, ॐ ह्रीं क्ष्म्ल्व्यूँ स्वाहा ।॥८ ॥
ॐ थुणामि पासनाहं, ॐ ह्रीं पणमामि परम भक्तिए ।
अट्ठक्खर धरणेंदो-पउमावई पयडिया कित्ती ॥९॥
जस्स पय कमल मज्झे, सया वसेइ पउमावई य धरणिंदो ।
तस्स नामेण सयलं, विसहर विसं नासेइ ॥ १o ॥
तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि कप्प पाय वब्भहिए ।
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ॥ ११ ॥
ॐ नट्टठ मयट्ठ ठाणे पणट्ठ कम्मट्ठ नट्ठ संसारे।
परमट्ठ निट्ठि अट्ठे ,अट्ठ गुणाधिसरं वन्दे ह्रीं स्वाहा॥१२॥
ॐ गरुडो वनिता पुत्रो, नागलक्ष्मीं महाबलः।
तेण मुच्चंति मुसा, तेण मुच्चंति पन्नगाः ॥ १३॥
स तुह नाम सुद्ध मंतं, सम्मं जो जवेइ सुद्ध भावेणं ।
सो अयरामरं ठाणं,पावइ न य दोग्गइ दुक्खं वा ॥१४॥
ॐ पण्डु-भगंदर दाहं, कासं सासं च सूलमाइणि।
पास पहुपभावेण,नासंति सयल रोगाइं ह्रीं स्वाहा॥१५॥
ॐ विसहर दावानलं साइणि वेयाल मारि आयंका ।
सिरि नीलकंठ पासस्स, समरण मित्तेण नासंति ॥१६॥
पन्नासं गोपीडां कूरग्गह, तुह दंसणं भयं काये ।
आवि न हुँ तिए तह वि, तिसंज्झं जं गुणिज्जासु ॥१७॥
पीडं जंतं भगंदरं खासं, सासं सूल तह निव्वाहं ।
सिरि सामल पासमहंत, नाम पउर पऊलेण ॥ १८॥
ॐ ह्रीं श्रीं पासधरण संजुत्तं, विसहर विज्जं जवेइ सुद्ध मणेणं,
पावइ इच्छियं सुहं ॐ ह्रीं श्रीं क्ष्म्ल्व्यूं स्वाहा ॥ १९॥
ॐ रोग जल जलण विसहर, चोरारि मइंद गय रण भयाइं ।
पास जिण नाम संकित्तणेणं, पसमंति सव्वाइं ह्रींस्वाहा ॥२०॥
ॐ जयउ धरणिंद नमंसिय, पउमावई पमुह निसेविय पाया ।
ॐ क्लीं ह्रीं महासिद्धिं ,करेइ पास जगनाहो ॥२१॥
ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह पासनाहं,ॐ ह्रीं श्रीं धरणिंद नमंसियं दुहविणासं ।
ॐ ह्रीं श्रीं जस्स पभावेण सया,ॐ ह्रीं श्रीं नासंति उवद्दवा बहवे ॥२२॥
ॐ ह्रीं श्रीं पइं समरंताण मणे,ॐ ह्रीं श्रीं न होइ वाही न तं महा दुक्खं ।
ॐ ह्रीं श्रीं नामंपि हि मंतसमं,ॐ ह्रीं श्रीं पयंड नत्थीत्थ संदेहो ॥२३॥
ॐ ह्रीं श्रीं जल जलण-भय तुह सप्प-सिंह,ॐ ह्रीं श्रीं चोरारि संभवे खिप्पं ।
ॐ ह्रीं श्रीं जो समरेइ पासपहुं, ॐ ह्रीं श्रीं पहववि कयावि किंचि तस्स ॥२४॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रीं इह लोगट्ठी पर लोगट्ठी,ॐ ह्रीं श्रीं जो समरेइ पासनाहं ।
ॐ ह्राॅ ह्रीं ह्रूॅ ह्रृः ग्राँ ग्रीं ग्रूॅ ग्रः, तं तह सिज्झई खिप्पं ॥२५॥
इह नाह समरह भगवंत, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ग्राँ ग्रीं ।
ग्रूॅ ग्रः क्लीं क्लीं श्री कलि कुण्ड स्वामि ने नमः ॥२६॥
इअ संथुओ महायस,भक्तिब्भर निब्भरेण हियएण।
ता देव दिज्ज बोहिं,भवे भवे पास जिणचंद ॥२७॥
॥ श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् ॥
ReplyDeleteउवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म घण मुक्कं ।
विसहर विस निन्नासं, मंगल कल्लाण आवासं ॥१॥
विसहर फुलिंग मंतं, कंठे धारेई जो सया मणुओ ।
तस्स गह-रोगमारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ॥२॥
चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होई।
नर तिरि एसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख दोगच्चं ॥३॥
ॐ अमर तरु कामधेणु, चिंतामणि-काम- कुंभ माइया ।
सिरि पासनाह सेवा, गहणे सव्वे वि दासत्तं ॥४॥
ॐ श्रीं ऐं तुह दंसणेण सामिय,पणासेइ रोग सोग दुःक्ख दोहग्गं ।
कप्प तरु मिव जायई, ॐ तुह दंसणेण सव्व फल हेऊ स्वाहा ॥५॥
ॐ ह्रीं नमिउण विग्घ नासय, मायाबी एण धरण नागिंदं ।
सिरि कामराज कलियं, पास जिणिंदं नमंसामि ॥६॥
ॐ ह्रीं श्रीं सिरिपास विसहर, विज्जा मंतेण झाणं झाएज्जा ।
धरण-पउमावई देवी, ॐ ह्रीं क्ष्म्ल्व्यूँ स्वाहा ॥७ ॥
ॐ जयउ धरणिंद-पउमावई य नागिणी विज्जा ।
विमलझाण सहिओ, ॐ ह्रीं क्ष्म्ल्व्यूँ स्वाहा ।॥८ ॥
ॐ थुणामि पासनाहं, ॐ ह्रीं पणमामि परम भक्तिए ।
अट्ठक्खर धरणेंदो-पउमावई पयडिया कित्ती ॥९॥
जस्स पय कमल मज्झे, सया वसेइ पउमावई य धरणिंदो ।
तस्स नामेण सयलं, विसहर विसं नासेइ ॥ १o ॥
तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि कप्प पाय वब्भहिए ।
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ॥ ११ ॥
ॐ नट्टठ मयट्ठ ठाणे पणट्ठ कम्मट्ठ नट्ठ संसारे।
परमट्ठ निट्ठि अट्ठे ,अट्ठ गुणाधिसरं वन्दे ह्रीं स्वाहा॥१२॥
ॐ गरुडो वनिता पुत्रो, नागलक्ष्मीं महाबलः।
तेण मुच्चंति मुसा, तेण मुच्चंति पन्नगाः ॥ १३॥
स तुह नाम सुद्ध मंतं, सम्मं जो जवेइ सुद्ध भावेणं ।
सो अयरामरं ठाणं,पावइ न य दोग्गइ दुक्खं वा ॥१४॥
ॐ पण्डु-भगंदर दाहं, कासं सासं च सूलमाइणि।
पास पहुपभावेण,नासंति सयल रोगाइं ह्रीं स्वाहा॥१५॥
ॐ विसहर दावानलं साइणि वेयाल मारि आयंका ।
सिरि नीलकंठ पासस्स, समरण मित्तेण नासंति ॥१६॥
पन्नासं गोपीडां कूरग्गह, तुह दंसणं भयं काये ।
आवि न हुँ तिए तह वि, तिसंज्झं जं गुणिज्जासु ॥१७॥
पीडं जंतं भगंदरं खासं, सासं सूल तह निव्वाहं ।
सिरि सामल पासमहंत, नाम पउर पऊलेण ॥ १८॥
ॐ ह्रीं श्रीं पासधरण संजुत्तं, विसहर विज्जं जवेइ सुद्ध मणेणं,
पावइ इच्छियं सुहं ॐ ह्रीं श्रीं क्ष्म्ल्व्यूं स्वाहा ॥ १९॥
ॐ रोग जल जलण विसहर, चोरारि मइंद गय रण भयाइं ।
पास जिण नाम संकित्तणेणं, पसमंति सव्वाइं ह्रींस्वाहा ॥२०॥
ॐ जयउ धरणिंद नमंसिय, पउमावई पमुह निसेविय पाया ।
ॐ क्लीं ह्रीं महासिद्धिं ,करेइ पास जगनाहो ॥२१॥
ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह पासनाहं,ॐ ह्रीं श्रीं धरणिंद नमंसियं दुहविणासं ।
ॐ ह्रीं श्रीं जस्स पभावेण सया,ॐ ह्रीं श्रीं नासंति उवद्दवा बहवे ॥२२॥
ॐ ह्रीं श्रीं पइं समरंताण मणे,ॐ ह्रीं श्रीं न होइ वाही न तं महा दुक्खं ।
ॐ ह्रीं श्रीं नामंपि हि मंतसमं,ॐ ह्रीं श्रीं पयंड नत्थीत्थ संदेहो ॥२३॥
ॐ ह्रीं श्रीं जल जलण-भय तुह सप्प-सिंह,ॐ ह्रीं श्रीं चोरारि संभवे खिप्पं ।
ॐ ह्रीं श्रीं जो समरेइ पासपहुं, ॐ ह्रीं श्रीं पहववि कयावि किंचि तस्स ॥२४॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रीं इह लोगट्ठी पर लोगट्ठी,ॐ ह्रीं श्रीं जो समरेइ पासनाहं ।
ॐ ह्राॅ ह्रीं ह्रूॅ ह्रृः ग्राँ ग्रीं ग्रूॅ ग्रः, तं तह सिज्झई खिप्पं ॥२५॥
इह नाह समरह भगवंत, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ग्राँ ग्रीं ।
ग्रूॅ ग्रः क्लीं क्लीं श्री कलि कुण्ड स्वामि ने नमः ॥२६॥
इअ संथुओ महायस,भक्तिब्भर निब्भरेण हियएण।
ता देव दिज्ज बोहिं,भवे भवे पास जिणचंद ॥२७॥